Image description
Image description
Image description


                                      

                                          ड्राइंग रूम


वास्तु शास्त्र में ड्राइंग रूम को लेकर कोई विशेष चर्चा नहीं है। कुछ  वास्तुशास्त्रयों ने वायव्य कोण में ड्राइंग रूम बनाने का प्रस्ताव किया है जो कि प्राचीन वास्तु शास्त्रों की भाव

ना के अनुरूप नहीं है। वराहमिहिर के अनुसार वायव्य कोण में धान्यागार अर्थात अन्न भण्डारण की व्यवस्था प्रस्तावित की गई थी और पश्चिम दिशा मघ्य से वायव्य कोण पर्यन्त रोदन कक्ष हुआ करता था। अन्न भण्डारण वायव्य कोण में होने का अर्थ उच्चाटन की प्रकृति होने के कारण अधिक अन्न का खर्च होना माना गया है। प्राचीन भारतीय वैदिक ऋषि यह मानते थे, जिस घर में अधिक अन्न खर्च होगा वह घर अधिक मेहमान आने के कारण शीघ्र उन्नति को होगा। अर्थात जिस घर में वर्ष में 2 बोरी गेहूं खर्च होता है, वायव्य में भण्डारण के कारण 3 बोरी खर्च हो जाएगा। आधुनिक महिलाएं चाहती हैं कि आधा बोरी अन्न भी खर्च न हों। मेहमान कम आवें और आवें तो खाने के लिए उन्हें ढाबे में ले जाया जाए। मनोवृत्ति में अब अंतर आ गया है और आगंतुक के प्रति शिष्टाचार के नियम भी बदल गए हैं। उधर ड्राइंग रूम यदि रोदन कक्ष के लिए प्रस्तावित स्थान में आ गया तो घर की महिलाओं या कुंठित व्यक्तियों के लिए नैराश्य भावनाओं के निष्क्रमण का स्थान भी नहीं रहता है। प्राचीन शास्त्रों के इस प्रस्ताव का पालन किया जाए कि रोदन कक्ष के स्थान पर प्रतिदिन भी यदि एक घंटा से अधिक वे लोग समय बिताएं जो कि समूह के रूप में रहते हैं या जिस घर में कुंठाएं अधिक है तो इस स्थान पर अश्रुपात को प्रेरणा मिलेगी और çस्त्रयों के मनोमस्तिष्क में बनी हुई काल्पनिक ग्रंथियों के उन्मूलन में भी मदद मिलेगी।


आज अस्पतालों के मनोवैज्ञानिक कक्ष या न्यूरोलोजी विभाग भरे रहते हैं और सार्वजनिक जीवन में कुंठाग्रस्त या अवसाद से पीडित लोग जिन दवाईयों का आश्रम लेते हैं वे अधिकतर नींद लाने वाली होती है, जिनके लेने के थोडे दिन बाद ही व्यक्ति इन दवाओं का एडिक्ट भी हो जाता है। यदि वायव्य कोण में हम ड्राइंग रूम बनाएंगे तो रोदन कक्ष और धान्यागार का स्थान छिन जाएगा और घर में रोग निवारण के लिए शास्त्रोक्त रीति से उपलब्ध कराए गए स्थान से हम वंचित रह जाएंगे। दूसरे यह भारतीय संस्कृति के विपरीत है कि हम गैस्ट रूम उस जगह बनाएं जहां मेहमान 3 दिन की बजाय एक दिन में ही वापस चला जाए। अबोध कन्याओं के लिए भी यह शयन कक्ष उचित स्थान नहीं है क्योंकि उच्चाटन प्रकृति होने के कारण इस स्थान पर सोने वाली कन्याएं मानसिक रूप से जल्दी परिपक्व हो जाएंगी और विवाह पूर्व ही उनका घर से मन उचट जाएगा। यह परिवार के लिए समस्या खडी कर सकता है। अत: वायव्य कोण में ड्राइंग रूम या गैस्ट रूम का प्रस्ताव कोई बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है, क्योंकि यह शास्त्रीय धारणाओं के विपरीत है और यहां ड्राइंग रूम या गैस्ट रूम होने के कारण आगंतुक मेहमान मेजबान से दिलो-दिमाग से जुड नहीं पाएगा एवं विपरीत धारणाएं लेकर वापस जाएगा। स्वागत कक्ष का प्रस्ताव ईशान कोण में होना बताया गया है। बृहत्संहिता के अनुसार ईशान कोण में औषधि, देवगृह और सर्वधाम के स्थान आते हैं। स्वभावत: देवगृह में यदि देवता का भी स्थान हो तो आगंतुक उस स्थान पर संकोच सहित और सम्मानसहित जाएगा। पुनश्च: उस स्थान पर यदि शयन करेगा तो वहां कोमल और आघ्यात्मिक भावनाएं ही प्रधान रहेंगी और आगंतुक मेहमान मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निर्मलचित्त रहने के कारण मेजबान के प्रति विपरीत धारणाएं नहीं बना पाएगा। वह स्थान देव स्थान होने के कारण मेजबान परिवार में भी मेहमान के प्रति देवतुल्य धारणाएं रहेंगी और अतिथि को देव ही समझा जाएगा। अत: यह स्थान ड्राइंग रूम या गैस्ट रूम के लिए अधिक प्रशस्त है।


पुराने राजा-महाराजा दीवाने आम व दीवाने खास बनवाते थे। दीवाने आम में वे सब व्यक्तियो से मिलते थे और दीवाने खास में वे कुछ महžवपूर्ण व्यक्तियों से मिलते थे। आधुनिक स्थापतियों ने एक ऑर्डिनरी डाईन और एक फाईन डाईन (उच्चाकोटि के भोजन का विशेष स्थान) का प्रस्ताव किया है। फाईन डाईन में ड्रिंक्स का प्रयोग या विशेष भोजन या विशेष अतिथियों का आगमन शामिल किया है, परंतु यह स्थान ड्राइंग रूम का स्थान नहीं ले सकता। अधिकांश मेहमान ऎसे आते हैं जो चाय पीकर ही वापस चले जाते हैं। अत: ड्राइंग रूम का स्थान डाईनिंग रूम से अलग रखा जाना ही उचित है। कुछ आधुनिक आर्किटेक्ट दो ड्राइंग रूम की व्यवस्था रखने लगे हैं। जो मेहमान साधारण रूप से आएं और कुछ समय व्यतीत करके चले जाएं उनके लिए ईशान कोण का ड्राइंग रूम उत्तम रहता है। परंतु जो लोग परिवार के अंतरंग मित्र हों और स्त्री-बच्चों सहित आएं, उनके लिए नैऋत्य कोण में वह स्थान दिया जा सकता है जिसे कि वराहमिहिर ने शस्त्रागार बताया है। लगभग सभी प्राचीन शास्त्रकारों ने गृहस्वामी के लिए शयनकक्ष दक्षिण दिशा में ही प्रस्तावित किया है न कि दक्षिण-पश्चिम में। आजकल के कुछ वास्तु शास्त्रयों ने नैऋत्य कोण में मास्टर बैडरूम प्रस्तावित किया है। यह स्थान दक्षिण के शयनकक्ष की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली नहीं होता। अत: हम नैऋत्य कोण में सामान्यतौर से खास पारिवारिक मित्रों के लिए ड्राइंग रूम बना सकते हैं, साथ ही उसे इस भांति भी तैयार कर सकते हैं कि जब उस घर में मेहमान नहीं हो तो टी.वी. रूम या लीविंग रूम या सम्मिलित रूप से बैठकर वहां कुछ गतिविधियां की जा सके। इसके दो लाभ होंगे, जिन छोटे पुत्र-पुत्रियों को किसी कारण से भवन में उचित स्थान न मिल सके उन्हें यदि नैऋत्य के गैस्ट रूम या लीविंग रूम में दो घंटे भी बिताने को मिल जाएं तो उनके व्यक्तिगत गुणों में वृद्धि और स्वभाव में गांभीर्य आने लगेगा। अप्रत्यक्ष रूप से एक लाभ होगा कि नैऋत्य कोण में बैठने पर वहां मन लगने लगता है। ऎसा तभी संभव है जब घर के सभी सदस्यों के बीच में स्नेह, सद्भाव और सामंजस्य हो। अत: घर में एकता बढाने के लिए यह स्थान बहुत अच्छा है। परंतु ऎसा तभी संभव है जब भूखंड का क्षेत्रफल 300 गज या अधिक हो अन्यथा दो ड्राइंग रूम के स्थान निकालना अत्यंत कठिन काम है।


आजकल आर्किटेक्ट प्लॉट के मघ्य में ओपन लाउंज की व्यवस्था करके उसमें डाईनिंग टेबल तथा सोफा रखने की जगह निकाल देते हैं तथा दोनों के बीच में विभाजक दीवार या पर्दे के माघ्यम से दोनों को अलग करने की चेष्टा करते हैं। इससे भवन की प्राईवेसी समाप्त हो जाती है और लगभग हर व्यक्ति घर के अंदर तक झांकने में सफल हो जाता है। ड्राइंग रूम ऎसा होना चाहिए जिससे घर का एकांत भंग न हो। रसोई इतनी नजदीक हो कि ड्राइंग रूम तक चाय-पानी इत्यादि पिलाने में कठिनाई न हों। इस उद्देश्य से अग्निकोण में रसोई और पूर्व दिशा मघ्य में एक डाईनिंग टेबल की व्यवस्था रखते हुए यदि ईशान कोण मे ड्राइंग रूम की व्यवस्था कर ली जाए तो न केवल घर की सुविधा बढेगी बल्कि शास्त्रीय नियमों का पालन भी किसी हद तक हो सकेगा। जो भूखंड बहुत बडे हैं तथा जिसमें मुख्य भवन निर्माण के अतिरिक्त कई गुना अधिक भूमि बच जाती है उनमें ड्राइंग रूम हमेशा पश्चिम दिशा में ले जाना उचित रहता है क्योंकि ऎसे भूखंडों में दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम तो निर्मित क्षेत्रफल के कारण सुधर जाता है परंतु पश्चिम दिशा खाली रह जाती है। पश्चिम दिशा में ड्राइंग रूम का एक फायदा अवश्य होता है कि यहां बैठकर व्यक्ति भावनाओं को छिपा नहीं पाता है और वे अनायास ही अभिव्यक्त हो जाती हैं। ड्राइंग रूम मुख्य भवन के अनुपात में बहुत बडा नहीं होना चाहिए। बहुत बडे ड्राइंग रूम की व्यवस्था बहुत बडे खर्चे का कारण बनते हैं। अनुपात से बडा ड्राइंग घर के अंदर के प्राणियों में हीन भावना को जन्म देने लगता है। इसके विपरीत बहुत बडे निर्मित क्षेत्रफल के अनुपात से काफी छोटा ड्राइंग रूम भी हीन भावनाओं को जन्म देता है। यदि घर में पांच बैडरूम भी हों तो कम से कम 250 वर्गफुट में एक ड्राइंग रूम अवश्य ही बनाया जाना चाहिए।

 


                                        शयन कक्ष



वास्तु में शैया का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग शयनकक्ष में ही बिताता है। योगशास्त्र में भी निद्रा की अवधि और अवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरीय चार अवस्थाएँ बताई गई हैं। 

वास्तुशास्त्र में शैया के लिए लकड़ी के स्पष्ट निर्देश हैं कि वृक्ष की आयु का परीक्षण करके ही उसका प्रयोग करना चाहिए। दक्षिण भारत के ग्रंथों में शैया के लिए चंदन का प्रयोग भी उचित ठहराया गया है। 

शैया की माप के बारे में विधान है कि शैया की लंबाई सोने वाले व्यक्ति की लंबाई से कुछ अधिक होना चाहिए। पलंग में लगा शीशा वास्तु की दृष्टि से दोष है, क्योंकि शयनकर्ता को शयन के समय अपना प्रतिबिम्ब नजर आना उसकी आयु क्षीण करने के अलावा दीर्घ रोग को जन्म देने वाला होता है।

 

एक आरामदायक शयन कक्ष के लिए जो तथ्य जरूरी हैं, वे हैं आरामदायक पलंग, आँखों को भाने वाली रोशनी और कमरे की सजावट। कमरे की सजावट के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं-

* सर्वप्रथम आप शयन कक्ष की रूपरेखा तैयार कीजिए।
* शयन कक्ष के सामान के लिए उपयुक्त स्थान का चयन।
* आपके पलंग का चयन
* श्रृंगार दर्पण के लिए स्थान
* आपके शयन कक्ष की साज-सज्जा
* कक्ष में रोशनी की व्यवस्था आदि।


* शयन कक्ष को सजाने के लिए फर्नीचर इस प्रकार का होना चाहिए जिससे कक्ष में ज्यादा जगह प्रतीत हो और कमरा बड़ा लगे। यदि आप अपना स्वयं का घर बनाते हैं, तब तो आप शयन कक्ष की लंबाई-चौ़ड़ाई अपनी इच्छानुसार रख सकते हैं, परंतु यदि आपके पास फ्लैट है, तब आप उपर्युक्त रूपरेखा के अनुसार कक्ष को सजा सकते हैं।

* कक्ष के लिए उपयुक्त स्थान आपकी अपनी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आपकी नींद कच्ची है, तो आपका शयन कक्ष घर के शांत कोने में होना चाहिए। 

* यदि आपकी देर तक सोने की आदत है तो आपका कमरा उस जगह होना चाहिए जहाँ सूरज की रोशनी न आ सके। 

* यदि आप सुबह उठने के आदी हैं, तो आपका कमरा पूर्वमुखी होना चाहिए, जिससे कि सूर्य की रोशनी सीधी आप पर आए।

* कक्ष के लिए मौसम के बदलाव को भी ध्यान में रखा जा सकता है। शयन कक्ष उस दिशा में हो जहाँ पर स्वच्छ हवा का संचार हो सके। भारत के पश्चिम और मध्य भागों में पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम की ओर से हवा का आदान होता है, जबकि पूर्वी स्थानों में दक्षिण-पूर्वी हवा कमरे को गर्म कर सकती है।

* बच्चों का शयन कक्ष प्रायः माता-पिता के शयन कक्ष के पास ही होता है। जब तक बच्चे छोटे हों व आप पर निर्भर रहते हों, तब तक के लिए शयन कक्ष माता-पिता के पास ही होना चाहिए।

* आपके शयन कक्ष के पास ही बाथरूम होना चाहिए।

* कक्ष में सामान के लिए जगह विभाजित करना करना चाहिए अर्थात पलंग, ड्रेसिंग टेबल, अलमारी आदि कहाँ रखी जाएगी।

बैडरूम कई प्रकार के होते हैं। एक कमरा होता है- गृह स्वामी के सोने का एक कमरा होता है परिवार के दूसरे सदस्यों के सोने का। लेकिन जिस कमरे में गृह स्वामी सोता है, वह मुख्य कक्ष होता है। 

अतः यह सुनिश्चित करें कि गृह स्वामी का मुख्य कक्ष; शयन कक्ष, भवन में दक्षिण या पश्चिम दिशा में स्थित हो। सोते समय गृह स्वामी का सिर दक्षिण में और पैर उत्तर दिशा की ओर होने चाहिए। 

इसके पीछे एक वैज्ञानिक धारणा भी है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव और सिर के रूप में मनुष्य का उत्तरी ध्रुव और मनुष्य के पैरों का दक्षिणी ध्रुव भी ऊर्जा की दूसरी धारा सूर्य करता है। इस तरह चुम्बकीय तरंगों के प्रवेश में बाधा उत्पन्न नहीं होती है। सोने वाले को गहरी नींद आती है। उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है। घर के दूसरे लोग भी स्वस्थ रहते हैं। घर में अनावश्यक विवाद नहीं होते हैं। 

यदि सिरहाना दक्षिण दिशा में रखना संभव न हो, तो पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है। स्टडी; अध्ययन कक्ष वास्तु शास्त्र के अनुसार आपका स्टडी रूम वायव्य, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य होना उत्तम माना गया है। 

ईशान कोण में पूर्व दिशा में पूजा स्थल के साथ अध्ययन कक्ष शामिल करें, अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होगा। आपकी बुद्धि का विकास होता है। कोई भी बात जल्दी आपके मस्तिष्क में फिट हो सकती है। मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव नहीं रहता।

 

इसी प्रकार प्रवेश द्वार की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए, इससे लक्ष्मी का अपमान होता है। स्वर्गवासी वृद्घों की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा में ही लगाना चाहिए। पलंग कभी भी दीवार से मिलाकर न रखें। इससे पत्नी-पति में तकरार होती है। शौचालय की सीट उत्तर दक्षिण की तरफ होनी चाहिए।

शयन कक्ष में पानी या भारी वस्तु न रखें। शयन कक्ष में जूठे बर्तन रखने से महिला के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। साथ ही परिवार में क्लेश भी होता है। शयन कक्ष में व्यसन करने से आपकी तरक्की में बाधा आने की संभावनाएं रहती है। यदि आपको शयनकक्ष में तस्वीरें लगानी ही है तो यहां परिवार के सदस्यों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें लगाना शुभ होता है। शयनकक्ष में फिश एक्वेरियम या झरने की तस्वीरें नहीं रखें।


भवन या प्लॉट के चारों कोनों को आपस में रेखाओं से मिलाने पर गुणा के आकार की दो रेखाओं पर पड़ने वाला सारा क्षेत्र वस्तु का अंश या रीढ़ है। इन मर्म स्थानों पर भूतल या किसी भी फ्लोर पर छत से गुजरता हुआ कोई खंभा, बीम, लोहे का शहतीर, सेप्टिक टैंक,सीवेज लाइन हो तो घर में असाध्य रोगों का प्रवेश हो जाता है। बेड को कोने में दीवार से सटाकर बिलकुल न रखें। कमरे में दर्पण को कुछ इस तरह रखें, जिससे लेटी अवस्था में आपका प्रतिबिम्ब उस पर न पड़े।

* फ्रिज कभी भी बेडरूम में न हो। 

* शयनकक्ष में साइड टेबल पर दवाई रखने का स्थान न हो। अनिवार्य दवाई को भी सुबह वहाँ से हटाकर अन्यत्र रख दें।

* कमरे में सामान ठूँसकर न भरें।

 

उत्तर दिशा जल तत्व की प्रतीक है। इसके स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में घर की स्त्रियों के लिए रहने की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।

पूर्वी दिशा अग्नि तत्व का प्रतीक है। इसके अधिपति इंद्रदेव हैं। यह दिशा पुरूषों के शयन तथा अध्ययन आदि के लिए श्रेष्ठ है।

पश्चिमी दिशा वायु तत्व की प्रतीक है। इसके अधिपति देव वरूण हैं। यह दिशा पुरूषों के लिए बहुत ही अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में पुरूषों को वास नहीं करना चाहिए।

पलंग के पीछे मजबूत दीवार होनी चाहिए। पलंग के ठीक सामने दर्पण न हो, ऐसा होने से व्यक्ति अनिद्रा व बेचैनी का अनुभव करता है। 

शयन कक्ष में ड्रेसिंग टेबल खिड़की के सामने नहीं रखें।

बेडरूम के अन्दर या बाहर कहीं भी बाण अथवा अर्द्धचन्द्राकार फर्नीचर नहीं लगवाएँ। इससे घर के सदस्यों के स्वास्थ्य खराब रहते हैं।

शयन कक्ष हमारे घर का वह कक्ष होता है, जिसमें हम सोते हैं। परिवार में हर किसी का अलग-अलग शयन कक्ष होता है। वास्तु में इन अलग-अलग शयन कक्षों की दिशाएँ भी अलग-अलग बताई गई है। आइए जानते हैं कि किस व्यक्ति का शयन कक्ष किस दिशा में होना चाहिए - 

मुख्य शयन कक्ष जिसमें घर का मुखिया सोता है- नैऋत्य कोण में रहे, तो अत्यंत शुभ होता है।

घर में अविवाहित कन्याओं तथा मेहमानों के लिए शयन कक्ष नार्थ-वेस्ट में होने चाहिए। इस दिशा में शयन कक्ष का आशय है- उनकी जल्द से जल्द घर से विदाई।

शयन कक्ष में दंपति के लिए प्यार और आराम के वो लम्हें कैद होते हैं, जिनका मंजर इसी कक्ष में कैद रहता है। लेकिन कभी-कभी प्यार की जगह यहाँ कलह का वातावरण निर्मित हो जाता है और दंपति के दिलों में दूरियाँ बढ़ जाती हैं। 

प्यार के इस कक्ष में हमेशा प्यार भरा वातावरण ही बना रहे तथा आपके दांपत्य जीवन में खुशियों की बहार आएँ। इसके लिए वास्तुशास्त्र में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। आइए जानते हैं कि वास्तु के अनुसार आपका शयनकक्ष कैसा हो - 

* शयन कक्ष का पलंग यदि पलंग पेटी तो भी उसके भीतर सामान रखने से परहेज करें। 

* पलंग पर दो अलग-अलग गद्दों की बजाय एक ही गद्दे का प्रयोग करें। इससे पति-पत्नी में एकता व सामंजस्य बना रहता है। 

* इस कक्ष की दीवारों पर हल्के रंगों से ही पेंट कराएँ। 

* शयनकक्ष में प्राकृतिक पौधे लगाने की बजाय कृत्रिम पौधे लगाएँ क्योंकि प्राकृतिक पौधे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कार्बन डाईऑक्साइड गैस छोड़ते हैं। 

* शयनकक्ष में फिश एक्वेरियम या झरने की तस्वीरें नहीं रखें। 

* पलंग को दीवार से सटाकर नहीं रखें क्योंकि ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच दूरियाँ बढ़ती हैं। 

* यदि आपको शयनकक्ष में तस्वीरें लगानी ही है तो यहाँ परिवार के सदस्यों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें लगाएँ।

शयनकक्ष में पलंग को दक्षिणी दीवार से लगा कर रखें। 

सोते समय सिरहाना उत्तर में या पूर्व में कदापि न रखें। 

सिरहाना उत्तर में या पूर्व में होने पर गृहस्वामी को शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति नहीं होती है। गृहस्वामी को मानसिक कष्टों तथा तनाव को झेलना पड़ता है। सिर में दर्द, चक्कर तथा नींद पूरी न आना आदि रोगों से गृहस्वामी ग्रस्त रहता है।

 

 

 


                                                    नारी और वास्तु

 

वास्तु शास्त्र मे मकान मे नारी या गृहणी का अहम स्थान है ,बिना नारी के मकान की उपयोगिता नही ,और बगैर वास्तु के मकान शमशान या मरघट मे तब्दील हो जाता है ,इस लेख मे


 वास्तु और नारी के बीच संबंधो वा संतुलन से पैदा होने वाली उपयोगी उर्जा पर ज़ोर दिया गया है ,अगर घर की स्त्रियाँ वास्तु सम्मत तरीके से कार्य व्यवहार करे ,तो उनका जीवन


 स्वास्थ्य  पूर्ण वा ऊर्जामयी होगा ,ऐसी स्त्रियाँ जीवन मे काफ़ी तरक्की करती है ,और रोग मुक्त उल्लास पूर्ण जिंदगी व्यतीत करती है ,


गृहणी का जयदातर समय घर मे रसोई मे या घर के साफ-सफाई के कार्यो मे व्यतीत होता है ,जैसे किचन को ही ले लें ,वास्तु मे बताया गया है की खाना बनाते समय गृहणी का चेहरा


 किस दिशा मे होना चाहिए ,किचन का सिन्क वा चूल्हा कहाँ होना चाहिए ,किचन का दरवाजा किस दिशा मे होना चाहिए ,किचन के भारी सामानो को किस दिशा मे रखना चाहिए


 ,किचन मे कौन-कौन सी वस्तुओ को रखना चाहिए आदि ढेर सारी बाते स्त्रियों के स्वास्थ्य वा रिश्तों से जुड़ी है ,अगर स्त्रियाँ वास्तु सम्मत तरीके से कार्य करे , तो उनका जीवन काफ़ी


 सुख पूर्ण वायतीत होगा ,आइए,वास्तु सम्मत वा वास्तु विरुद्ध कार्य व्यवहार करने वाली स्त्रियों पर वास्तु के प्रभाव ,दुष्प्रभाव व स्वास्थ्य पर एक नज़र डालते है,


1 –आजकल हर उम्र की स्त्रियों का स्वस्थ 4-5 दसक पहले की स्त्रियों की तुलना मे ज़यादा खराब रहने लगा है ,रहन –सहन, ख़ान –पान ,व्यवहार आदि हर प्रकार की सावधानिया


 बरतने के बाद भी महिलाओ मे रोग बढ़ते ही जा रहे है ,कारण क्या है/अगर वास्तु पर विचार करे , तो यह बताने मे कोई बड़ी बात नही होगी की वास्तु का रोगो से अभिन्न संबंध है.


2 –आजकल बनने वाले घरो की बनावट मे बहुत ज़यादा वास्तु दोष होते है,आर्किटेक्ट मकानो को सुंदरता प्रदान करने के लिए घर की वास्तु पर ध्यान नही देते और नतीजा यह होता है


 की घर वालो खास कर स्त्रियों को इसका ज़्यादा ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है ,वास्तु दोषों के कारण घर मे उर्जा संतुलन मे दिक्कत पैदा होने लगती है और बीमारिया सिर उठाने लगती


 है ,स्त्रियों इस मामले मे ज़्यादा कमजोर पाई जाती है जल्दी ही रोगो के चपेट मे आ जाती हैं.


    3 –जिस भवन मे सामने की दीवार मे दरार हो ,उस भवन मे रहने वाली स्त्रियों का स्वास्थ्य ठीक नही रहता है ,ऐसी स्त्रियाँ ,खास कर गृहस्वामिनी मानसिक तनाव से गुजरती है.

 

4 - जिस मकान का आगे का भाग टूटा हुआ प्लास्टर उखड़ा हुआ होगा , उस घर की मालकिन का स्वस्थ खराब रहेता है .

 

  

                             स्त्रियों की मॉडर्न लाइफ स्टाइल और वास्तु दोष

 

  आज की अधिकांश पढ़ी- लिखी स्त्रियाँ हाथो के नाख़ून बढ़ाती है,क्योकि यह फैशन का अभिन्न हिस्सा बन गया है ,पर क्या आप जानते है की उनका यह फैशन कितना नुकसान दायक


 सिद्ध हो रहा है…


1 –मध्यमा अंगुली के नाख़ून बढ़े हुए होते है ,तो उस स्त्री की आमदनी कम हो जाती है ,ऐसी महिला या युवती का मन हमेशा अशांत रहेगा ,मित्रो/सहेलियों से मन मोटॉव ,संम्पत्ति मे हानि होती है ,


2 –यदि कनिष्ठा के नाख़ून बढ़े हुए होते है ,तो उस स्त्री की अपने पति के साथ नही बनती है.


3 –यदि स्त्री अंगूठे का नाख़ून बढ़ा हुआ है ,तो ऐसी स्त्री हमेशा कर्ज़ मे डूबी रहती है ,ऐसी नारी का पति के साथ मनमुटाव रहता है. 


4 –अनामिका अंगुली के बढ़े नाख़ून होने पर स्त्री अपयश की शिकार होती है .


5 –तर्जनी अंगुली के नाख़ून बढ़े होने पर स्त्री व्यभिचारिणी हो जाती है .


6 –अगर स्त्रियाँ फैशन के वशीभूत हो , नाख़ून बढ़ाती है ,तो उनकी सफाई का पूरा ख्याल रखे .प्रायः बढ़े नाखूनो मे अक्सर गुथे आंटे का कुछ भाग रह जाता है और जब स्त्री ऐसे मे शौच के लिए जाती है , तो वह अशुद्ध हो


 जाती है ,जिससे उसके द्वारा किए गये पूजा-पाठ का फल नष्ट हो जाता है ,ऐसी स्थिति मे स्त्री ,पति के साथ सहवास करती है ,तो पति की उमर घटती है,पुत्र को खाना खिलाती है, तो पुत्र की बुद्धि मंद होती है ,वास्तु के


 अनुसार नाखूनो मे आटा नही फसना चाहिए और अपवित्रता ही सारी प्रतिकूल स्थिति को जन्म देती है.


7 –कभी भी स्त्री को दोनो हाथो से भोजन नही करना चाहिए ,लेकिन आज का फैशन स्त्री के सिर चढ़ कर बोल रहा है ,वे अक्सर पार्टियो में खुद को आधुनिक दिखाने की चाह में दोनो हाथो का भोजन के क्रम में ईस्तमाल


 करते है.जो वास्तु के हिसाब से ग़लत है वा प्रकृति विरुद्ध है ,इससे इस्त्री की निर्णायक शक्ति क्षीण होती जाती है .


8 –आज की नारियो का लाइफ स्टाइल बदल सा गया है ,ना कोई आचरण ,आज की नारी सुबह देर से उठती है,फिर खाना पकाती है ,उसके बाद स्नान आदि का काम ,जो वास्तु या प्रकृति के विरुद्ध है ,इस्त्री को स्नान


 करने के बाद ही रसोई का काम करना चाहिए .पहेली रोटी गाय को तथा अंतिम रोटी कुत्ते को देनी चाहिए.


9 -सुंदर स्वस्थ रहने के लिए नारियो को अपने भोजन मे मीठे का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए.