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                                          भैरव 


श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 

 

1. असितांग भैरव, 

2. चंड भैरव, 

3. रूरू भैरव,

4. क्रोध भैरव, 

5. उन्मत्त भैरव, 

6. कपाल भैरव, 

7. भीषण भैरव 
8. संहार भैरव।

क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है।
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं।

दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है।

शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।

Photo: shree bhairav

 

 

              

                        

                       पूजन विधि [संक्षिप्त] या पँचोपचार पूजन विधि


पूजन का नाम आते ही लोग परेशान हो जाते है की सही ढंग से कैसे पूजन करें . किसी ना किसी पंडित को खोजने लगते है . नोकारी पेशा लोग


 कहते है की पूजन के लिए टाइम नही है. इसलिए आज आपको पूजन की शास्त्रोक्त विधि बताने जा रहा हूँ जिस से आप सही ढंग से दो मिनट


 मे पूजन कर सकते है .शास्त्रो मे इस पूजन को पँचोपचार पूजन कहते है.


इसकी विधि इस प्रकार है……………………………..


सबसे पहले घी या तिल के तेल का दिया जलाएँ.


1.            ओम तिलकम समर्पयामि  …………………………..देवी या देवता को तिलक लगाएँ


2.            ओम पुष्पम समर्पयामि……………………….देवी या देवता को पुष्प या लौंग का जोड़ा चढ़ाए


3.            ओम धूपम आर्ध्रपयामि ……………………...देवी या देवता को धूपबत्ती सुलगाकर दिखाएँ


4.            ओम दीपम दर्शयामि  …………………………….. देवी या देवता को दिया दिखाएँ जो आप ने

                                                       

                                                                                         पहले जलाया है                                                                                                        .                                                                                      

5.            ओम नैवेद्यम निवेदयामि  …………………………. देवी या देवता को भोग लगाएँ    मिठाई , फल


.                                                                                          किशमिश , ड्राइ फ्रूट या इसमे से जो आप के पास हो

 

ये विधि शास्त्रोक्त पँचोपचार पूजन विधि है इस विधि से आप अपने ईष्ट का पूजन बगैर किसी की सहयता के बिना भी कर सकते हैं.

 

                                                                       

                                                                                                                 नवरात्रि विशेष

 

31/03/2014 आज से नवरात्र प्रारंभ हो गया है. आज हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ हो गया है . सभी हिंदू भाई बहनो को हिंदू नव वर्ष की शुभ


 कामनाए. हर जगह


 नवरात्रि से संबंधित पूजन सामग्री की दुकाने सज गयी है . लोग माता की पूजा के लिए प्रसाद और माता का चित्र , मूर्ति खरीद रहे हैं.  लेकिन


 हर  जाग माता चीते पर बैठी हुई है यही चित्र पूरे बाजार मे भरा पड़ा है . जो पूरी तरह से ग़लत है . आप ग़लत चित्र के आगे चाहे जितनी पूजा


 कर लो या सप्तशती का पाठ कर लो कुछ भी फल नही मिलने वाला है. कौन सा चित्र खरीदें इसके लिए बता रहा हूँ.


मा दुर्गा का अवतार महिषासुर नमक राक्षस का वध करने के लिए हुआ था .


चित्र मे मा दुर्गा शेर [लायन] पर बैठी हुई चीते [टाइगर] पर नही. मा तलवार लेकर महिषासुर का गला


 काटने जा रही हो.


यही चित्र सही है बाकी सब ग़लत. कुछ लोग कहते है की शेर का मुख बंद होना चाहिए .लेकिन यह एक युद्ध का चित्र है. इसलिए शेर का मुख बंद


 होने का सवाल ही नही पैदा होता .


ज़्यादा टिप्पणी करने वालो से केवल इतना कहूँगा की दुर्गा सप्तशती एक ज्वलन्त्र तन्त्र है.

 

                                                                                         

                                                                                               लघु नारियल


यह लघु नारियल समुद्र के किनारे पेड़ पर होता है। यह आकार में अति छोटा होता है। हजारों नारियलों से एकाध, नरियल ही लघु नरियल प्राप्त हो जाता है। यह अत्यंत दुलर्भ एवं प्रभावशाली होता है। इसे भगवान् की विशेष पूजा अथवा त्यौहार, पर्व पर पूजा में चंदन लगाकर मुद्रा के साथ अर्पित करते है। उसी प्रकार भगवान् को चंदन लगाकर लघु नरियल और सवा रूपया भेंट करके लाल कपड़े की थेली में नारियल रखेंकर गल्ले में अथवा खजाने में रखेंने से मनोकामना पूर्ण होती है। इच्छित फल प्राप्त प्राप्त होता है तथा भगवान् प्रसन्न होते है एवं भाक्ति प्राप्त होती है। यह धन, सम्पत्ति, वैभव प्रदान करता है। यह भगवान् जी की कृपा हेतु सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसकी महिमा अपरंपार है ऋषि विश्वमित्र की सृष्टि संरचना का यह प्रथम पुण्य है। इसलिए इसका विशेष महत्व है।

 

तंत्र प्रयोगों में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है जिनके माध्यम से टोटके और अधिक प्रभावशाली हो जाते हैं। ऐसी ही एक तांत्रिक वस्तु है लघु नारियल। लघु नारियल का प्रयोग अनेक टोटकों में किया जाता है विशेषकर धन-संपत्ति प्राप्ति के टोटको में। लघु नारियल को कुछ साधारण प्रयोग इस प्रकार हैं-


- धन, वैभव व समृद्धि पाने के लिए 5 लघु नारियल स्थापित कर उस पर केसर से तिलक करें और हर नारियल पर तिलक करते समय 27 बार नीचे लिखे मंत्र का मन ही मन जप करते रहें-

ऐं ह्लीं श्रीं क्लीं

- 11 लघु नारियल को मां लक्ष्मी के चरणों में रखकर ऊँ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् मंत्र की 2 माला फेर कर किसी लाल कपड़े में उन लघु नारियल को लपेट कर तिजोरी में रख दें व दीपावली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से लक्ष्मी चिरकाल तक घर में निवास करती है।

- अगर 
आप चाहते हैं कि घर में कभी धन-धान्य की कमी न रहे और अन्न का भंडार भरा रहे तो 11 लघु नारियल एक पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांध दें।




 

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                                                                                                   कस्तूरी


कस्तूरी एक प्रकार के हिरन के कांटा आदि लगने के बाद बनने वाली गांठ के रूप में होती है,उस हिरन का खून उस गांठ में जम जाता है,और उसके अन्दर ही सूखता रहता है,जिस प्रकार से किसी सडे हुये मांस की बदबू आती है उसी प्रकार से उस हिरन के खून की बदबू इस प्रकार की होती है कि वह मनुष्यजाति को खुशबू के रूप में प्रतीत होती है। जिस हिरन से कस्तूरी मिलती है वह समुद्र तल से आठ हजार फ़ुट की ऊंचाई पर मिलता है,मुख्यत: इस प्रकार के हिरन हिमालय दार्जिलिंग नेपाल असम चीन तथा सोवियत रूस मे अधिकतर पाया जाता है,कस्तूरी केवल पुरुष जाति के हिरन में ही बनती है जो कि खुशबू देती है,मादा हिरन की कस्तूरी कुछ समय तो खुशबू देती है लेकिन शरीर से अलग होने के बाद सडने लग जाती है। दूसरे कस्तूरी प्राप्त करने के लिये कभी भी हिरन को मारना नहीं पडता है,वह गांठ जब सूख जाती है,तो पेडों के साथ हिरन के खुजलाने और चट्टानों के साथ अपने शरीर को रगडने के दौरान अपने आप गिर जाती है। इस गिरी हुई गांठ पर वन्य जीव भी अपनी नजर रखते है,और जब उनसे बच पाती है तो ही मनुष्य को मिलती है।

 

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         धन लक्ष्मी शंख दक्षिणावर्ती शंख



                यह शंख समुद्र मे पैदा होता है. जहाँ से लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ. यह शंख भगवती लक्ष्मी


 का लघु भ्राता कहलाता है.यह शंख लक्ष्मी का ही दूसरा स्वरूप है और प्रत्येक गृहस्थ को अपने घर मे


 इस शंख को रखना चाहिए . संसार मे जितने शंख पाए जाते हैं वे बाईं तरफ से खुलने वेल होते हैं ,


 परंतु जो शंख दाहिनी ऑर खुलते हैं उस शंख को दक्षिणावर्ती शंख कहा जाता हा.


 छोटा दक्षिणावर्ती शंख प्रयोग मे नही लाना चाहिए ,क्यूंकी वह उतना अधिक फलदायक और अचूक


 नही होता है. कम से कम जिस शंख मे आधा किलो पानी समा सके ,उतना बड़ा शंख प्रामाणिक और


 मान्य है.


         यदि इस शंख को कारखाने या फॅक्टरी मे स्थापित किया जाए तो स्वतः ही उसकी दरिद्रता


 समाप्त हो जाती है, और आर्थिक उन्नति होने लगती है. इस शंख के रहने से व्यापार मे वृद्धि होती


 रहती है.


         ये शंख जहाँ भी रहता है दरिद्रता वहा से पलायन कर जाती है.


         अन्न भंडार मे अन्न,धन भंडार मे धन,वस्त्र भंडार मे वस्त्र , जहाँ ये शंख रखा जाता है वहा उस


 वस्तु की वृद्धि होती रहती है.


          इसमे जल भर कर दे और व्यक्ति,वस्तु ,स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप,अभिचार,


 खराब ग्रहो का प्रभाव समाप्त हो जाता है.


          जादू, टोना, नज़र, चलव जैसे जैसे अभिचार कृत्यो का दुष्प्रभाव भी इस से समाप्त हो जाता है.


          इस से विशेष व्यक्ति का वशीकरण किया जा सकता है.


          इस से दरिद्रता निवारण का कल्प प्रयोग किया जाता है.


           इस से व्यापार वृद्धि का प्रयोग किया जाता है.


           इस से आकस्मिक धन पाने का प्रयोग किया जाता है.


            इस से गृहस्थ सुख पाने का प्रयोग किया जाता है.


   ये शंख तीन प्रकार का होता है-------


      1-उत्तम—जिस शंख मे आधा किलो 500 मिली से ज़्यादा पानी समा सके .


      2-मध्यम—जिस शंख मे आधा किलो 500 मिली पानी भली प्रकार से आ सके.


       3-सामान्य—जिस शंख मे आधा किलो 500 मिली से कम पानी समता है.


   यदि आप सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित दक्षिणावर्ती शंख अपने घर, दुकान,


 फॅक्टरी मे स्थापना करना चाहते है तो हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं.


                                     हत्था जोड़ी 


हत्था जोड़ी अक्सर clenched मुट्ठी के साथ मानव हथियार दिखने के रूप में वर्णित है कि रूट का एक प्रकार है . हत्था जोड़ी मुख्य रूप से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र के अनुसार , मध्य भारत में स्थित है और अक्सर कहा जाता है , जो भारत के मध्य प्रदेश क्षेत्र में पाया जाता है , "भारत का दिल . " यह पनपने के लिए संयंत्र के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करने , बड़े पठारों , बड़ी पर्वत श्रृंखला , नदियों और घने जंगलों के मील में समृद्ध है के रूप में इस संयंत्र रूट , इस क्षेत्र में होती है.


शक्तिशाली प्रभाव


हत्था जोड़ी, सम्मोहित ढाल और उसे पाने के लिए जो लोग वित्तीय स्थिति में सुधार करने की क्षमता सहित प्रभाव का एक मेजबान प्रदान करता है . यह डर विजय और उबरने की क्षमता प्रदान करके विचार विमर्श , साक्षात्कार , और लड़ाइयों में , यात्रा पर यह पकड़ के संरक्षित है कहा जाता है के रूप में अपनी सबसे शक्तिशाली प्रभाव , इसके परिरक्षण प्रभाव है .


अच्छी किस्मत आकर्षण


हत्था जोड़ी भी भाग्य , ज्ञान , धन और आकर्षण के साथ धारक प्रदान करता है कि एक दुर्लभ शुभ चिन्ह माना जाता है. धारक एक परीक्षण में , वे दांव लगा रहे हैं जो परिस्थितियों का सामना करना पड़ या अपने कब्जे में इस रूट होने , कृपापूर्वक जीतने की जरूरत है, जब उनके भाग्य और अन्य प्रतिद्वंद्वी पर विजय के लिए क्षमता के लिए प्रोत्साहित करेंगे .


वित्तीय लाभ


नुकसान और बुराई से सुरक्षा प्रदान करने के अलावा , हत्था जोड़ी भी सौभाग्य, धन और व्यापार में वृद्धि प्रदान करता है यह ग्राहकों , व्यापार की स्थिति और एक व्यक्ति की आकर्षण शक्ति को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, यह व्यापार के लिए विशेष रूप से लाभप्रद है . यह आकर्षण के रूप में भारतीय संस्कृति में पहचान की है जो " Vashikaran , " की शक्तियों होता है क्योंकि यह इस करता है.


हत्था जोड़ी प्रकृति का एक आश्चर्य है


जिसमें दो हाथ एक प्रार्थना के रूप में , एक साथ शामिल हो गए हैं . यह वास्तव में हाथ जोड़कर के आकार में एक बहुत ही दुर्लभ पौधे की जड़ है . यह तेल अवशोषण इसका कारण यह भी है, तेल स्नान में रखा जाना चाहिए . हत्था जोड़ी , धन और अच्छी किस्मत के साथ पूजा आशीर्वाद दुर्घटनाओं और किसी भी तांत्रिक प्रभाव के बुरे प्रभावों के खिलाफ गार्ड. यह Vashikaran ' या सम्मोहन का अधिकार नहीं है , क्योंकि यह भी एक व्यक्ति की आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है. यह एहसान जीतने या परीक्षणों जीतने में बहुत उपयोगी है . 


हत्था जोड़ी एक संयंत्र है .

 यह मानव हथियार जैसी दो शाखाओं के साथ वास्तव में एक पौधे की जड़ है . हथियारों की समाप्ति पर पंजा की एक रूपरेखा है . यह ( कस ) मुट्ठी clenching है जो एक मानव आकृति थे के रूप में हालांकि उंगलियों के रूप में पंजा , लग रहा है. इस रूट की दोनों शाखाओं कटे और एक साथ शामिल हो रहे हैं, तो इसका आकार एक लगा हुआ हाथ तह ( हाथ ) जैसा दिखता है. संयंत्र ज्यादातर मध्य प्रदेश में पाया जाता है . वन जनजातियों बस उसे काट / इसे उखाड़ . हत्था जोड़ी विचित्र और दैवी प्रभाव के पास. यह चामुण्डा देवी का अवतार है . यह मोहना को सम्मोहित करने , लोगों को ढाल बकाया अधिकार है और वित्तीय स्थिति को बढ़ाता है . हत्था जोड़ी तांत्रिक दिनचर्या ( अनुष्ठान ) के बाद सिद्ध और समृद्ध बनाया जाना चाहिए .


हत्था जोड़ी यात्राएं , विचार विमर्श , साक्षात्कार और लड़ाई के मैदान में अपने पूजा ढालें ​​. यह जीत के साथ उसे प्रस्तुत. उन्होंने कहा कि यह धन और ऐश्वर्य प्रदान करने में बहुत कारगर साबित हो गया है आदि भूत की तरह है, कोई अलौकिक आत्माओं की अधिक भयभीत है . यह तांत्रिक गतिविधियों में बहुत महत्व रखती है . यह शुद्ध है ही लेकिन जब हत्था जोड़ी फायदेमंद है . एक प्रयुक्त हत्था जोड़ी किसी भी व्यक्ति को कोई फायदा हो सकता है. इसलिए, यह हमेशा ताजा होना चाहिए .

 

 

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                                        श्री यंत्र

श्री यंत्र की आकृति 

तंत्र में त्रिकोण को अत्यंत महत्व दिया गया है. मुख्य रूप से दो प्रकार के त्रिकोणों का प्रयोग यंत्रों के निर्माण में किया जाता है. पहला अधोमुखी तथा

दूसरा उर्ध्वमुखी. एक पुरूष रूपी शिव का प्रतीक है तथा दूसरा स्त्री रूपी शक्ति का प्रतीक होता है. इन दोनों त्रिकोणों के विविध संयोजनों से यंत्रों का निर्माण होता है.

शिव प्रतीक शक्ति प्रतीक


श्री यंत्र भी इन दोनों प्रतीकों का एक विशिष्ट संयोजन है. श्री यंत्र में चार उर्ध्वमुखी शिव प्रतीक त्रिकोण तथा पांच अधोमुखी शक्ति प्रतीक त्रिकोण हैं. इस प्रकार यह यंत्र शक्ति बाहुल्यता से युक्त भगवती महाविद्या श्री त्रिपुरसुंदरी का सिद्ध यंत्र है.


इन नौ त्रिकोणों के संयोग से निर्मित इस यंत्र के मय में स्थित त्रिकोण के अंदर इस यंत्र का हृदय भाग होता है जिसमें बिंदु प्रतीक के रूप में महाविद्या श्री त्रिपुरसुंदरी का वास होता है. इन नवत्रिकोणों को शरीर के नवद्वारों का प्रतीक है. इन नवत्रिकोणों को वृत्त के अंदर निर्मित किया जाता है. वृत्त के बाहर पहले अष्ट(आठ) दल वाला कमल होता है जो अष्ट सिद्धियों का प्रतीक है. पुनः वृत्त जो ब्रह्‌माण्ड का प्रतीक है के बाद षोडश (सोलह) दल वाला कमल होता है जो जीवन की संपूर्णता माने जाने वाले षोडश कलाओं का प्रतीक हैं. इसके बाहर चार द्वारों से युक्त आवरण होता ह.ै


भोजपत्र पर श्री यंत्र के निर्माण के लिए अष्टगंध को गंगाजल में घोलकर सोने की कलम से भोजपत्र पर लिखा जाना चाहिये. धातु पर यंत्र निर्माण की आधुनिक विधियां श्रेष्ठ हैं जिनमें इचिंग नामक तकनीक के द्वारा रेखाओं को बेहद स्पष्टता के साथ उकेरा जाता है. यदि प्राचीन विधि से धातु पर यंत्र को उकेरा जाए तो यह ध्यान रखना चाहिये कि उभरा हुआ भाग यंत्र का सीधा वाला भाग हो. अर्थात नालीदार भाग पीछे रहे.

श्री यंत्र से होने वाले लाभ


श्री यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है. कहा गया है कि :-


श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम्‌ , भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव....


अर्थात जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है

 

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                                                             गुंजा  या   घुंघची

 

गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है.  गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा  कुछ इस प्रकार है -

१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं.  यह प्रयोग ग्रहण काल,  होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

 

२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

 

३. जिस व्यक्ति को नजर  बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं. 

 

४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

 

काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।

 

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पारद शिव लिंग
 



पारद एक विशिष्ट तरल रूपी धातु है और स्वयं सिद्ध पदार्थ है. मनुष्य के सोलह संस्कार होते है


 लेकिन पारद के 18 संस्कार होते है. गोपनीय विधियो से कई संस्कार से पारद शिवलिंग का


 निर्माण किया जाता है. पारद शब्द की व्याख्या करे तो पा – विष्णु , आ – कालिका , द – ब्रह्मा


 के बीज अक्षर है. 


पारद की उत्पत्ति भोले नाथ शिव के वीर्य [ रस ] से हुई है. जिसकी तुलना ब्रह्मांड के किसी पदार्थ


 से नही करी जा सकती. 


रसेंद्र चूड़ामणी के अनुसार – ‘रस – रस ‘ ऐसा कहने मात्रा से मनुष्या समस्त पापो से मुक्त हो जाता है. 


रत्न समुच्च्य के अनुसार – पारदेश्वर विग्रह की नियमित आराधना करने से समस्त रोग – दोष


 आदि का नाश होता है.

प्राचीन तांत्रिक ग्रंथो के अनुसार करोड़ो शिवलिंगो की पूजा से जो फल मिलता है. उस से भी कई


 गुना फल पारद शिव लिंग के दर्शन पूजन और अभिषेक से सहज ही प्राप्त हो जाता है.


पारद शिव लिंग के नियमित पूजन से आप के घर के समस्त वास्तु दोष, ज़मीन के नीचे के दोष,


 तांत्रिक बंधन से मुक्ति, शुख - शांति,समृद्धि, धन-संपत्ति , यश – कीर्ति , विवाह बाधा से मुक्ति ,


 असाध्य रोगो से मुक्ति मिल जाती है. 


अतिशयोक्ति नही है मैने खुद ही 23 परिवारो मे सवा किलो ग्राम से ज़्यादा वजन के शोधित पारद


 शिवलिंग की स्थापना पूर्ण वैदिक विधि से करवाई है. और उनके परिवारो की चमत्कारिक उन्नति हुई है .

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                                                                                                काली हल्दी

हल्दी के बारे में हम सभी जानते हैं। इसका प्रयोग मसाले के रूप में होता है साथ ही पूजा-पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है। हल्दी की एक प्रजाति ऐसी भी है जिसका उपयोग तांत्रिक क्रियाओं के लिए किया जाता है, वह है काली हल्दी। काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है। काली हल्दी का सेवन तो नहीं किया जाता लेकिन इसे तंत्र के हिसाब से बहुत पूज्यनीय और उपयोगी माना गया है। यह अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करती है

।काली हल्दी के 7 से 9 दाने बनाएं। उन्हें धागे में पिरोकर धूप, गूगल और लोबान से शोधन करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है वह ग्रहों के दुष्प्रभावों से व टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।

- गुरु पुष्य योग में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर धूप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर एक सिक्के के साथ वहां रख दें जहां आप पैसे रखते हैं। इसके प्रभाव से धन की वृद्धि होने लगती है।

 

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                                                                 गौरीशंकर रुद्राक्ष

 

जब विवाह मे अत्यधिक विलंब हो रहा हो, विवाह हो गया हो और जीवन साथी से सामंजस्य नही बन रहा हो , तलाक़ की


 अर्थात दांपत्य जीवन तार तार होने की नौबत आ गयी हो और इन समस्याओं से छुटकारा पाने के विभिन्न उपाय भी


 नाकाफ़ी हो गये हो , तो गौरीशंकर रुद्राक्ष तत्काल सुफल प्रदान करता है. गौरीशंकर रुद्राक्ष को मुख्य रूप से विवाह मे


 आ रही बाधाओं के निवारण , शीघ्र विवाह और सफल दांपत्य जीवन के लिए धारण किया जाता है. गौरीशंकार रुद्राक्ष अद्भुत ,


 अनोखा, दुर्लभ रुद्राक्ष माना जाता है. जब दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से आपस मे जुड़े हुए होते है, उस युगल रुद्राक्ष को शिव और


 शिवा का प्रतीक मानते हुए  गौरीशंकर रुद्राक्ष कहा जाता है.


शिव और पार्वती का प्रतीक होने के कारण यह पति –पत्नी के बीच सामंजस्य स्थापित करता है. ऐसा अनुभव मे आया है की


 इस रुद्राक्ष को धारण करने से पति पत्नी के मध्य उत्पन्न हो रहे विवाद समाप्त होने लगते हैं और संबंधो मे मधुरता आती


 है.इसी प्रकार जब किसी लड़के या लड़की का विवाह नही हो पा रहा है या मनपसंद जीवन साथी के पाने मे बाधा आ रही


 हो तो इस रुद्राक्ष को धारण करने से अनुकूलता मिलती है और मनचाहे जीवन साथी की प्राप्ति होती है.


ऐसा माना जाता है की गौरीशंकार रुद्राक्ष विवाह कारक ग्रहो को बली करता है बल्कि अकारक ग्रहो को अनुकूल करने मे सक्षम  है.


जो लड़के या लड़किया मंगली हैं उनके लिए यह रुद्राक्ष वरदान के रूप मे है यह मंगल के समस्त दोषो को दूर करता है. प्रेम विवाह मे आ रही अड़चनो को दूर कर अनुकूलता देता है.


इसे लड़का या लड़की दोनो धारण कर सकते है.


सावधानी---- इस रुद्राक्ष को खरीदने मे सावधानी रखना चाहिए क्यूकी आज कल बाज़ार मे नकली रुद्राक्ष मिल रहे है. यह


 रुद्राक्ष देखने मे दो प्राकृतिक रूप से दो जुड़े दाने होते है जिसमे एक दाना दूसरे दाने से कुछ छोटा ज़रूर होता है. जहा से


 आपको विश्वास हो की आपको असली रुद्राक्ष मिल जाएगा वही से खरीदना चाहिए 

.

जो व्यक्ति लॅबोरेटरी टेस्टेड प्राणप्रतिष्ठित गौरीशंकर रुद्राक्ष प्राप्त करना चाहते हैं वे हमारी

 संस्था से संपर्क कर सकते हैं.