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                                    दीपावली की रात्रि



दीपावली की रात्रि मे लक्ष्मी , कुबेर , गणपति की पूजा का विशेष महत्व है. एस रात्रि को मंत्र , तंत्र  यंत्र  की


 सिद्दी की जाती है. दीपावली की रात्रिके चार 4 प्रहार होते है उनका अलग अलग महत्व  होता है. 


1-निशा 2-दरु  3-काल 4-महा .

 


इस रात 1 बजे  से 2 बजे  तक का समय महनिषा माना जाता है. एसी समय सिंह लग्न  पड़ता है जिस मे


 लक्ष्मी जी की तन्त्रोक्त  पूजा की जाती है.


एस दिन अमावस्या होती है सूर्य इस समय नीच का होता है और चंद्रमा तुला राशि मे उसके साथ होता है .


 अर्थात हमे प्रकाश देने वेल ग्रह एक विशेष स्थिति मे ज्योतिषीय  दृष्टि से दूर


 होते है . ये रात सबसे अंधेरी रात के रूप मे देखी जाती है . इसी लिए इसे महा निशा कहते है.


काली तंत्र  मे कार्तिक अमावस्या को काल रात्रि निरूपित किया गया है. काल रात्रि शत्रु विनाशनी  होती है


 लेकिन इस शुभ की प्रतीक सुख सौभाग्य दायिनि  होती है .इसी लिए केवल इसी अमावस्या को लक्ष्मी जी


 की पूजा का प्रावधान है.

 

आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्या आत्मा है और चंद्रमा मॅन  है. अर्थात अमावस्या एक ऐसा अवसर है जब मॅन


 (चंद्रमा ) पूर्ण  रूप से आत्मा (सूर्य) के समीप होकर आत्मरूप  होता है . उस दिन आत्मा के प्रकाश से मॅन 


 आत्मरूप  हो जाता है. यही अवस्था  इन्सान का अंतिम ध्येय  है .